कैंसर से बचाव मुश्किल नहीं, वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाने में मिली बड़ी सफलता : Cancer Vaccine


कैंसर विश्व स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। आंकड़ों के मुताबिक हर साल लाखों लोग विभिन्न प्रकार के कैंसर के कारण मर जाते हैं। प्रोस्टेट और फेफड़ों के कैंसर के ज्यादातर मामले पुरुषों में होते हैं, जबकि स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के ज्यादातर मामले महिलाओं में होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कैंसर के इलाज में काफी प्रगति हुई है। आधुनिक मशीनों और असरदार दवाओं ने कैंसर के इलाज को पहले से आसान बना दिया है लेकिन इलाज महंगा होने के कारण आम लोगों के लिए यह अभी भी मुश्किल बना हुआ है।

 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर अब लाइलाज बीमारी नहीं रही, हालांकि इस बीमारी को बढ़ने से कैसे रोका जाए यह एक मुश्किल काम बना हुआ है।

 

शोधकर्ता लगातार कैंसर की रोकथाम का अध्ययन कर रहे हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक इसके लिए वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि कैंसर की रोकथाम के लिए प्रभावी टीके कब उपलब्ध हो सकते हैं और इसकी प्रभावशीलता के बारे में अध्ययनों में क्या पाया गया है?

 

 

 

 

 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिटिश भारतीय डॉ. टोनी ढिल्लन (53) आंतों के कैंसर से बचाव और लड़ने के लिए पहला टीका बनाने में सफल रहे हैं। वैक्सीन का पहला चरण सफल रहा है, दूसरे चरण पर काम चल रहा है। विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि यह वैक्सीन दुनिया भर में आंतों के कैंसर के खतरे से सुरक्षा प्रदान करने में मददगार हो सकती है।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डॉ. ढिल्लन पिछले पांच साल से ऑस्ट्रेलिया में प्रोफेसर टिम प्राइस के साथ वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। डॉ. ढिल्लों का कहना है कि कैंसर से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए सर्जरी से दो सप्ताह पहले वैक्सीन की तीन खुराक दी जाएंगी। हमारा मानना है कि जब मरीज़ सर्जरी कराते हैं, तो कैंसर के अधिकांश भाग के जीवित रहने की संभावना कम होती है और, कुछ मामलों में, पूरी तरह से ख़त्म भी हो सकता है।

 

 

दूसरे चरण के ट्रायल की तैयारी

 

वैक्सीन को ऑस्ट्रेलियाई क्लिनिकल-स्टेज इम्यूनो-ऑन्कोलॉजी कंपनी इम्मुजीन द्वारा डिजाइन किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा, हम दूसरे चरण के परीक्षण के लिए जा रहे हैं। यू.के.(UK) और ऑस्ट्रेलिया के 10 केंद्रों में 44 मरीज़ चरण 2 परीक्षण में भाग लेंगे, जो एक वर्ष तक चलने की उम्मीद है। टीम ने कहा, यह वैक्सीन अन्य कैंसर में भी काम कर सकती है। आगे के चरणों में हम इसे अन्य प्रकार के कैंसर पर भी परीक्षण करने की योजना बना रहे हैं।

 

शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो वैक्सीन को बाजार तक पहुंचने में दो-तीन साल लग सकते हैं।

 

 

कोलन और पैंक्रियाटिक कैंसर के लिए वैक्सीन

 

दुनिया के कई देशों में आंतों के कैंसर के साथ-साथ कोलन और अग्नाशय के कैंसर के लिए भी टीके विकसित करने पर काम चल रहा है। वैज्ञानिक कथित तौर पर एक नए टीके पर काम कर रहे हैं जो उच्च जोखिम वाले लोगों में कोलोरेक्टल और अग्नाशय कैंसर को फिर से उभरने से रोकने में मदद कर सकता है। यह उन लोगों के लिए मददगार हो सकता है जिनका पहले कैंसर का इलाज हो चुका है।

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जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित निष्कर्ष, AMPLIFY-201 परीक्षण पर आधारित हैं। ये टीका केआरएएस जीन के दो आनुवंशिक उत्परिवर्तनों के लक्षित करते हैं जो कोशिकाओं के विभाजन और कैंसर पैदा करने का कारक माने जाते रहे हैं।

 

 

सर्वाइकल कैंसर की भारतीय वैक्सीन

 

भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम सर्वाइकल कैंसर का टीका बनाने में भी सफल रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) ने देश की पहली सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन तैयार कर ली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि 9 से 14 साल की लड़कियों को सर्वाइकल कैंसर का टीका देने से इस गंभीर प्रकार के कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।

 

रिपोर्ट्स के मुताबिक, दुनिया भर के कई शोध संस्थान विभिन्न प्रकार के कैंसर के लिए टीके बनाने पर काम कर रहे हैं। प्रोस्टेट, डिम्बग्रंथि, मेलेनोमा और गैस्ट्रिक कैंसर के विकास को रोकने और मुकाबला करने के लिए टीके विकसित करने पर भी काम किया जा रहा है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि कैंसर की रोकथाम के लिए प्रभावी टीका बनाने में एक दशक और लग सकता है।

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