दिल्ली के अस्पतालों में लेप्रोस्कोपी सर्जरी की लागत कितनी हैं। – GoMedii


लेप्रोस्कोपी की प्रक्रिया में रोगी के किसी आसान स्थान से नमूना लिया जाता है तथा इसके बाद इस नमूने को माइक्रोस्कोप के जरिये जांचा जाता है। यह जांच करने के लिए कि क्या वह लेप्रोसी बैक्टीरिया मौजूद है, और अगर वह उपस्थित हैं, तो उनकी संख्या कितनी है, और किस प्रकार के हैं यह जांच की जाती है। जिसका उपयोग लेप्रोसी नामक एक रोग का निदान करने में किया जाता है। लेप्रोस्कोपी का उद्देश्य रोगी के किसी अंग में लेप्रोसी बैक्टीरिया (Mycobacterium leprae) की उपस्थिति को देखना है।

 

 

 

 

 

लेप्रोस्कोपी एक तकनीक है जो लेप्रोसी (Hansen’s disease) का निदान करने और इसका इलाज में मदद करने के लिए उपयोगी होती है। यह एक सर्जिकल प्रितिक्रिया हैं जिसकी मदद से डॉक्टर मरीज़ को बिना किसी बड़ा चीरा लगाए पेट के अंदर तथा पेल्विस एरिया की सर्जरी करने में सफल हो पाते हैं तथा इस सर्जरी को कीहोल सर्जरी और न्यूनतम चीरा सर्जरी के नाम से भी जाना जाता हैं लैप्रोस्कोपिक उपकरण का उपयोग आंतरिक अंगों के क्षतिग्रस्त हिस्सों की मरम्मत या उन्हें हटाने के लिए भी किया जाता है। यह ओपन सर्जरी के जोखिम से बचने के लिए आवश्यक भी हो सकता है। और यह प्रक्रिया सरीर के आंतरिक भागों को देखने में मदद करती है। इस दौरान मरीज़ को बड़े आकार का चीरा नहीं लगाया जाता हैं क्युकी डॉक्टर इस सर्जरी को करने मैं लैप्रोस्कोप नामक उपकरण का इस्त्माल करते हैं।

 

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी के कारण क्या हो सकते हैं ?

 

 

  • सटीक निदान: लेप्रोस्कोपी से लेप्रोसी बैक्टीरिया की उपस्थिति और संख्या की सटीक जाँच की जा सकती है, जिससे मरीज़ के सटीक निदान की संभावना बढ़ती है।
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  • उपचार की योजना: लेप्रोस्कोपी के परिणामों के आधार पर चिकित्सक रोग की गंभीरता को मूल्यांकित करते हैं और उपचार की योजना तय करते हैं। यह सहायक तथ्य प्रदान करता है कि कौन सा उपचार मरीज़ के लिए उपयुक्त हो सकता है।

 

  • रोग प्रारंभ में ही उपचार: लेप्रोस्कोपी की मदद से रोग को प्रारंभिक चरण में ही पहचाना जा सकता है, जिससे रोग की प्रगति को रोकने में मदद मिल सकती है और इससे यह संभावना बढ़ती है कि रोग का फैलाव और जनसंख्या में रोग की फैलाव को कम किया जा सके।

 

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी किन बीमारियों में किया जाता हैं ?

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी कुछ इस प्रकार की बीमारियों में किया जाता हैं जैसे की –

 

 

 

 

 

  • अपर और लोवर जीआई ट्रैक्ट की सर्जरी

 

  • थोरेक्स सर्जरी

 

 

  • बड़ी और छोटी आंत का ऑपरेशन

 

  • बांझपन के मरीजों के लिए

 

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी कैसे की जाती है?

 

 

स्टेप-1: लैप्रोस्कोपिक सर्जरी अस्पताल या एक आउट पेशेंट सर्जिकल सेंटर में कि जाती है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान डॉक्टर मरीज को एनेस्थीसिया देता है। जिससे मरीज बेहोश हो जाता है और सर्जरी के दौरान उसे कोई दर्द महसूस नहीं होता है।

 

स्टेप-2: डॉक्टर कुछ मामलों में, स्थानीय संज्ञाहरण का उपयोग क्षेत्र को सुन्न करने के लिए कर सकते है। इससे रोगी सर्जरी के दौरान जाग सकता है लेकिन कोई दर्द महसूस नहीं होता है।

 

स्टेप -3 : लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान, सर्जन रोगी के पेट में एक छोटा चीरा लगाता है, और फिर एक छोटी ट्यूब, जिसे कैनुला कहा जाता है, डाला जाता है। प्रवेशनी का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड गैस पास करके पेट को फुलाने के लिए किया जाता है।

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स्टेप-4 : यह गैस प्रक्रिया के दौरान पेट के अंगों को अधिक स्पष्ट रूप से देखने की अनुमति देती है। सर्जन फिर रोगी के पेट में एक और चीरा लगाता है और लेप्रोस्कोप डालता है। लैप्रोस्कोप में कैमरा पेट के आंतरिक हिस्सों की छवियों को बाहर रखी स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है, जिसे बाद में सर्जन द्वारा देखा जाता है।

 

स्टेप-5: इसके अलावा, अन्य उपकरणों को सम्मिलित करने के लिए चीरे लगाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, बायोप्सी के लिए ऊतक का नमूना लेना। इसके निदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद, सभी उपकरण हटा दिए जाते हैं। चीरा को टांके या सर्जिकल टेप से बंद कर दिया जाता है।

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी की लागत कितनी होती हैं ?

 

 

भारत में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की औसत लागत लगभग रु. 32,000 से 66,000 के बीच में है। हालांकि, अलग-अलग शहरों और अस्पतालों में कीमत अलग-अलग हो सकती हैं। यदि लेप्रोस्कोपी सर्जरी के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करनी हो तो यहाँ क्लिक करे।

 

 

 

लेप्रोस्कोपी सर्जरी के लिए दिल्ली के अच्छे अस्पताल –

 

 

 

 

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