भारत में गर्भपात कराने के क्या है नियम? 24 हफ्ते के गर्भावस्था में किस बात का रहता है डर


जिस तरह से मां बनना किसी महिला के लिए सबसे खुशी की बात होती है. ठीक वैसे ही ‘गर्भपात’ एक महिला के लिए बेहद कष्टदायक फैसला होता है. इन दिनों ‘गर्भपात’ पर बने देश में नियम को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सोशल मीडिया पर लोग सही और गलत को लेकर अपनी-अपनी दलील दे रहे हैं. वहीं एक महिला के हिसाब से सोचें तो ‘गर्भपात’ जैसा फैसला लेना एक पर्सनल च्वाइस के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक परेशानी से भरा हो सकता है. सच यही है कि गर्भपात की स्थिति किसी भी महिला के लिए शारीरिक-मानसिक रूप से कष्टदायक होता है.

गर्भपात क्या है?

गर्भावस्था को खत्म करना या भ्रूण को खराब करना गर्भपात कहलाता है. आजकल गर्भपात कई तरीके से की जाती है जैसे दवाओं के साथ-साथ सर्जरी के जरिए भी गर्भपात की जाती है. गर्भपात करने का एक निश्चित वक्त यानी महीना होता. जिसे डॉक्टर सुरक्षित गर्भपात कहते हैं. लेकिन अधिक समय हो गया है और महिला को गर्भपात कराना है तो सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. 

गर्भपात इस बात पर निर्भर करती है कि पेट में कितने महीने का बच्चा है. क्योंकि इसके कई सारे साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं. जैसे- ब्लीडिंग होना, पेल्विक हिस्से में दर्द, जी मिचलाना, उल्टी. गर्भपात के बाद अगर ज्यादा खून बहना, तेज बुखार और तेज दर्द है तो लक्षण गंभीर है और वक्त रहते तुरंत गायनेकोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए.

कितने हफ्ते बाद गर्भपात बहुत ज्यादा खतरनाक है?

12 हफ्ते में गर्भपात शारीरिक रूप से सुरक्षित माना दाता है. इसे आरंभिक गर्भपात भी कहा जाता है. अगर किसी महिला का बार-बार मिसकैरेज हो जा रहा है. कठिन परिस्थिति में सीरियस मेडिकल इश्यू है तो महिला 20 वें सप्ताह में गर्भपात करवा सकती है.  26 वें सप्ताह में गर्भपात करना बेहद खतरनाक माना गया है. इसके पीछे कारण यह है कि पेट के अंदर बच्चा का विकास बहुत जल्दी होता है. 26 वें सप्ताह के गर्भ में मेडिकल टर्मिनेशन के दौरान भ्रूण के जन्म लेने की संभावना बढ़ जाती है. डॉक्टर कहते हैं कि 26 वें सप्ताह में चांसेस बढ़ जाता है कि बच्चा जिंदा जन्म ले. 

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भारत में गर्भपात को लेकर क्या कानून और नियम है?

भारत में गर्भपात कानून

भारत में गर्भपात कौन करवा सकता है और कितने हफ्ते कर सकता है?

सबसे पहला कारण यह है कि बार-बार गर्भधारण एक महिला के लिए शारीरिक और मानसिक परेशानी बन सकती है.’टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी एक्ट’ के अंतर्गत गर्भपात को लेकर खास अधिनियम बनाए गए हैं .  इस अधिनियम के तहत अगर एक महिला के गर्भावस्था में 12 हफ्ते का बच्चा है तो वह किसी अच्छे पंजीकृत डॉक्टर से गर्भपात करवा सकती हैं. अगर भ्रूण 12 से 20 सप्ताह का है तो  दो डॉक्टर की अनुमति के बाद ही गर्भपात करवा सकती हैं. 

भारत के गर्भपात कानून के मुताबिक कौन गर्भपात करवा सकता है और कितने हफ्ते में कर सकता है?

भारत के गर्भपात कानून के मुताबिक विशेष परीस्थितियों में ही गर्भपात कराया जा सकता है. अगर किसी महिला का 12 हफ्ते का गर्भ है और किसी गंभीर मेडिकल इश्यू की वजह से डॉक्टर ने गर्भपात कराने का आदेश दिया है तो ऐसी स्थिति में गर्भपात जायज है. 

12 हफ़्ते से ज्यादा लेकिन 20 हफ़्ते तक हो तो ऐसी स्थिति में गर्भपात करने के लिए दो डॉक्टरों की राय की जरूरत पड़ती है. 20 हफ्ते तक की समयसीमा में गर्भपात वैध है. 

इस स्थीति में 20 हफ्ते तक की समयसीमा में गर्भपात कराया जा सकता है

अगर मां की जान को किसी भी तरह का खतरा हो. यह खतरा शारीरिक और मानसिक भी हो सकता है. इसमें स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचने का ख़तरा हो.

अगर महिला को किसी भी तरह की शारीरिक दिक्कत है और उससे अगर बच्चे को शारीरिक और मानसिक नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो ऐसी स्थिति में गर्भपात करवाया जा सकता है. 

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अगर बलात्कार के कारण गर्भ ठहर गया हो. तो उस स्थिति में गर्भपात कराया जा सकता है. 

गर्भनिरोधक गोली खाने बावजूद शादीशुदा महिला का गर्भ ठहर गया हो तो ऐसी स्थिति गर्भपात कराया जा सकता है. 

मौजूदा क़ानून के बावजूद गर्भपात के समय को 20 से ज़्यादा या 24 हफ़्तों में किए जाने की मांग भी उठ रही हैं.

दरअसल, ये नियम इसलिए बनाया गया है क्योंकि 20 हफ़्ते तक बच्चा इतना ज्यादा विकसित हो जाता है कि उसके बारे में काफी कुछ पता चल सके. लेकिन जैसे-जैसे तकनीक का विकास हुआ है लोग को पेट में पल रहे बच्चे को बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल जाती है. और ऐसे में किसी भी तरह की समस्या सामने आने पर गर्भपात का फैसला लेना काफी मुश्किल हो जाता है. 

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, मंगलवार के दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक शादीशुदा महिला के 26वें सप्ताह के गर्भ में पल रहे भ्रूण के गर्भपात करने पर रोक लगा दी. जिसके बाद गर्भपात को लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है क्योंकि एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के डॉक्टरों के पैनल को महिला का चिकित्सकीय गर्भपात कराने यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी का ऑर्डर जारी किया गया था. बाद में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर रोक लगा दी. 

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलील

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पैनल ने सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलों को खास ध्यान रखा. और उन्होंने कहा कि 26वें सप्ताह में किसी भी भ्रूण को मारना सही नहीं है. क्योंकि 26वें सप्ताह में भ्रूण का इतना विकास हो जाता है कि उसकी जन्म लेने की संभावना बढ़ जाती है. ऐश्वर्या भाटी आगे कहती है कि 26 हफ्ते के गर्भ के मेडिकल टर्मिनेशन के दौरान भ्रूण जिंदा बाहर आए इसकी संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है. यह दलील पेश करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर रोक लगाने की मांग की है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले पर लगा दी रोक

केंद्र की तरफ से ऐश्वर्या भाटी ने अपने दलील में कहा कि किसी भी बच्चे को जिंदा पैदा होने से रोकना या जन्म के बाद उसे मारना आईपीसी की धारा 315 के तहत दंडनीय अपराध है. ऐसी स्थिति में गर्भपात करने वाले डॉक्टरों को एक नैतिक कष्ट का सामना करना पड़ रहा है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र से सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पारित पहले के आदेश को वापस लेने के लिए एक औपचारिक आवेदन देने को कहा है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि बुधवार को सुनवाई के लिए वह विशेष पीठ को सौपेंगे. 

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