क्या है वर्चुअल ऑटिज्म जिसने बच्चों को बना लिया है अपना गुलाम


Virtual Autism: अगर आपके घर में बच्चे हैं और वो मोबाइल में ज्यादातर वक्त बिताते हैं तो आपको भी जरूर इससे परेशानी होती होगी. पहले मां बाप बच्चों की जिद पूरी करने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते थे. लेकिन मोबाइल की ये लत बच्चों के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक साबित हुई है. कम उम्र के बच्चों में मोबाइल की लत के बहुत सारे खतरे सामने आए हैं जिसमें वर्चुअल ऑटिज्म (virtual autism)का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जा रहा है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने संकेत दिए हैं दुनिया भर में बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म  का तेजी से शिकार हो रहे हैं. चलिए जानते हैं कि वर्चुअल ऑटिज्म  क्या है और साथ ही जानेंगे कि कैसे आप अपने बच्चे को इस बीमारी से बचा सकते हैं. 

 

क्या है वर्चुअल ऑटिज्म   

वर्चुअल ऑटिज्म  दरअसल ऐसी स्थिति है जिसमें मोबाइल और स्मार्टफोन, टीवी या कंप्यूटर पर ज्यादातर वक्त बिताने वाला बच्चा दूसरों से बातचीत करने में दिक्कत महसूस करने लगता है. ये स्थिति सवा साल से छह साल तक बच्चों में ज्यादा देखी जा रही है. चूंकि बच्चे ज्यादातर वक्त मोबाइल या टीवी के सामने बिताते हैं तो वो बोलने, बात करने या बात को समझने में दिक्कत महसूस करने लगते हैं. ऐसे बच्चों का स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता. वो दूसरों के सामने या दूसरों से बातचीत करने में सहज नहीं हो पाते और उनका सामाजिक दायरा कमजोर होने लगता है. सारा दिन जब बच्चा टीवी या मोबाइल के आगे बैठता है तो उसका दिमाग उसी तरह व्यवहार करने लगता है. वो बाकी लोगों से आंखें मिलाने में कतराता है, बातचीत में दिक्कत होने के साथ साथ बच्चे का इंटेलिजैंस लेवल भी कमजोर होने लगता है. ऐसी स्थिति को ही वर्चुअल ऑटिज्म  कहा गया है. 

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खेलों के जरिए बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म  से बचाना संभव  

Right To Play Initiative के डायरेक्टर जावेद अख्तर का मानना है कि अगर बच्चों का शेड्यूल सही से बनाया जाए तो उन्हें वर्चुअल ऑटिज्म  की चपेट से बचाया जा सकता है. इसके लिए बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी, खेल और दूसरी एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इससे बच्चा गैजेट पर कम निर्भर होगा और उसका सामाजिक दायरा भी बढ़ेगा. बच्चे का स्क्रीन टाइम खत्म करने के लिए उसका शेड्यूल इस तरह बनाएं कि वो पूरा दिन बिजी रहे. दोपहर तक बच्चा स्कूल से आने के बाद लंच और आराम करे. इसके बाद उसकी आउटडोर एक्टिविटीज पर फोकस करें. वो पार्क या दूसरी जगहों पर जाकर खेले और दोस्तों से बातचीत करे. इसके साथ साथ उसका स्लीप पैटर्न भी दुरस्त करना चाहिए ताकि बच्चा एक सही वक्त पर सो जाए और मोबाइल देखने में समय खराब ना करे. बच्चों के साथ उनके मां बाप को भी स्पोर्ट्स और फन एक्टिविटी में भाग लेना चाहिए क्योंकि इससे बच्चा उत्साहित होगा और उसे मोबाइल की कमी नहीं खलेगी.

 

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.

 

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