ऑटिज्म होने के कारण क्या होते हैं। – GoMedii


ऑटिज्म, जिसे ऑटिजम स्पेक्ट्रम डिसआर्डर (Autism Spectrum Disorder, ASD) के रूप में भी जाना जाता है, जिसको एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसआर्डर कहते है जिससे की व्यक्ति के सामाजिक, संवादात्मक, और व्यावहारिक कौशल में भिन्नात्मक परिवर्तन होते हैं।यह एक प्रकार का विकास संबंधी गड़बड़ी है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानि होती हैं। जिसका कारण उपयुक्त चिकित्सा और शिक्षा के साथ यह अवगत किया जा सकता है, ताकि ऑटिस्टिक व्यक्तियों को उनकी जरूरतों के साथ समाज में सम्मानपूर्ण और स्वागत के साथ जीवन जीने में मदद मिल सके।

 

 

 

 

 

आटिज्म एक मस्तिष्क का विकार हैं जो इससे ग्रषित व्यक्तिओ को दुशरे व्यक्ति की तुलना में जीवन जीने में कठिन बनता हैं। और आटिज्म में मष्तिस्क के विभिन्न क्षेत्र एक साथ काम करने में असफल हो जाते हैं। तथा आटिज्म से ग्रषित व्यक्ति बाकी लोगो से अलग बोलते, सुनते और महसूस करते हैं।

 

 

 

ऑटिज़्म के कितने प्रकार होते हैं ?

 

 

ऑटिज़्म के तीन प्रकार होते हैं –

 

 

ऑटिस्टिक डिसॉर्डर (क्लासिक ऑटिज़्म): यह आटिज्म का सबसे आम प्रकार है जो लोग ऑटिज्‍म बिमारी के इस डिसऑडर से प्रभावित होते हैं तथा उन्‍हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं।

 

 

अस्पेर्गेर सिंड्रोम: यह आटिज्म की बीमारी का सबसे सरल रूप माना जाता हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति कभी-कभी अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं परन्तु कुछ अच्छे विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है।

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पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसॉर्डर: आमतौर परदेखा गया हैं की इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता है। परन्तु कुछ विशेष परेस्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीड़ित माना जाता है।

 

 

 

ऑटिज़्म के लक्षण क्या होते हैं ?

 

 

आटिज्म के लक्षण कुछ इस प्रकार नज़र आते हैं –

 

 

  • समझने में कठिनाइयाँ

 

  • सामाजिक संवाद की कमजोरी

 

  • आंखों की संपर्क में कमी

 

  • विशेष विषय में गहरा ज्ञान या न्या शौक

 

  • खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाने के प्रयास करना

 

  • बातचीत के दौरान दूसरे व्यक्ति के हर शब्द को दोहराना

 

  • निरंतर व्यवहार करना

 

 

 

ऑटिज़्म के कारण क्या होते हैं ?

 

 

आटिज्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे की –

 

 

  • गर्भावस्था की उम्र: 34 या उससे अधिक उम्र में मां बनना।

 

  • गर्भावस्था में जटिलताएं: वायरल संक्रमण, रक्तस्राव, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा या गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में ऑक्सीजन की कमी, ये सभी ऑटिज्म का कारण बन सकते हैं।

 

  • गर्भवती का मानसिक स्वास्थ्य: यदि गर्भवती महिला सिज़ोफ्रेनिया, अवसाद और चिंता से पीड़ित है या कभी पीड़ित रही है, तो बच्चे में ऑटिज्म का खतरा बढ़ सकता है।

 

  • गर्भावस्था में दवाएं: गर्भावस्था के दौरान, दवाओं की अधिक मात्रा ऑटिज्म के खतरे को 48 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है।

 

  • पारिवारिक वातावरण: परिवार की सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक परिस्थितियाँ आत्मकेंद्रित को प्रभावित करती हैं।

 

 

 

ऑटिज़्म का इलाज कैसे हो सकता हैं ?

 

 

आटिज्म का इलाज निम्न तरीकों से हो सकता हैं –

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प्रारंभिक हस्तक्षेप चिकित्सा: ऑटिज़्म बच्चों में जैसे ही पहचान में आए, वैसे ही इसका उपचार करना शुरू कर देना चाहिए। प्रारंभिक हस्तक्षेप चिकित्सा खासतौर से छोटे शिशुओं और बच्चों के लिए बनाई गई है। लोवास मॉडल और अर्ली स्टार्ट डेन्वेर मॉडल इनमे से दो सबसे ज़्यादा प्रचलित मॉडल हैं।

 

 

प्रीस्कूलर और बच्चों के लिए थेरेपी: बच्चों में ऑटिज़्म का उपचार बहुत जल्दी शुरू हो जाना चाहिए। जल्दी उपचार शुरू करने के अपने फायदे हैं। उपचार का असर हर बच्चे में अलग नज़र आएगा, परन्तु इसके फायदे होते ही हैं।

 

 

 

निम्नलिखित क्रियाएं ऑटिज़्म के उपचार में आती हैं:

 

  • हर हफ्ते कम से कम 24 घंटों की थेरेपी।

 

  • पेशेवर और अनुभवी थेरेपिस्ट से संपर्क और उपचार।

 

  • उपचार का मॉडल बनाकर इसमें प्रशिक्षण के उद्देश्य बनाना और इनका बार- बार विश्लेषण करना। बच्चे की प्रगति की इन उद्देश्यों से तुलना करके उसे मापना।

 

  • ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चों को इसी बीमारी से ग्रसित दूसरे बच्चों से मेल मिलाप करवाना।

 

  • विशिष्ट कमियों को दूर करने के लिए विशिष्ट थेरेपी। उदहारण के लिए: जिन बच्चों को ऐस्पर्गर्स सिंड्रोम है, उनमें सिर्फ सामाजिक कठिनाइओं से निपटने और रूचि लाने की ज़रूरत है।

 

  • माता- पिता की पूरी उपचार प्रक्रिया में ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी होनी चाहिए।

 

  • बच्चे को अलग-अलग डॉक्टर, जैसे की स्पीच थेरेपिस्ट, चिकित्सक वगैराह के पास ले जाना चाहिए।

 

 

 

 

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